08-12-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन 

बच्चों की विभिन्न स्टेजिस्

सदा विजयी स्वरूप बनाने वाले, सर्व वरदानों के अधिकारी और विश्व द्वारा सदा सत्कारी बनाने वाले, विश्व-कल्याणकारी पिता बोले:-

अशरीरी भव – यह वरदान प्राप्त कर लिया है? जिस समय संकल्प करो कि ‘मैं अशरीरी हूँ’, उसी सेकेण्ड स्वरूप बन जाओ। ऐसा अभ्यास सहज हो गया है? सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की निशानी है। कभी सहज, कभी मुश्किल, कभी सेकेण्ड में, कभी मिनट में या और भी ज्यादा समय में अशरीरी स्वरूप का अनुभव होना अर्थात् सम्पूर्ण स्टेज से अभी दूर है। सदा सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की परख है। 

अभी-अभी बापदादा विदेश और अपने भारत देश के सर्व बच्चों की देखरेख करने चक्कर पर निकले। चक्कर लगाते विशेष बात क्या देखी? तीन प्रकार के बच्चों को देखा। 

1. ज्ञान-रत्नों और याद की शक्ति के द्वारा सर्व शक्तियों को स्वयं में सम्पन्न करने वाले, निरन्तर चैतन्य चात्रक जो हर सेकेण्ड लेने वाले अर्थात् धारण करने वाले जिन्हें सिवाय प्राप्ति के या स्वयं को सम्पन्न बनाने के और कोई लगाव नहीं। रात है अथवा दिन है, लगन एकरस है -- ऐसे चैतन्य चात्रक विदेश में और भारत में दोनों ही स्थानों पर देखे। 

2. सर्विस की लगन में मगन - दिन-रात सर्विस के प्लैन्स बनाने में व्यस्त। सर्विस के फल-स्वरूप स्वयं में खुशी का अनुभव करने वाले। लेकिन सर्वशक्तियों का, हर संकल्प में मायाजीत बनने की शक्ति का वा ‘अशरीरी भव’ के वरदान की प्राप्ति का अनुभव करने में सदा एक-रस स्थिति नहीं। खुशी का अनुभव विशेष, लेकिन शक्ति का अनुभव कम करने वाले नॉलेजफुल का अनुभव ज्यादा और पॉवरफुल का अनुभव कम करने वाले, ज्ञान का सुमिरण ज्यादा, समर्थी-स्वरूप कम - ऐसे बच्चे भी देखे। 

3. दिन-रात मंज़िल को सामने रखते हुए, सम्पूर्ण बनने की शुभ आशा रखते हुए, सदा पुरूषार्थ में व्यस्त, पुरूषार्थ में समय ज्यादा और प्राप्ति के समय कम अनुभव करने वाले, किसी-न-किसी समस्या का सामना करने में ही ज्यादा समय लगाने वाले, मुश्किल को सहज बनाने में लगने वाले - ऐसे बच्चे बहुत समय युद्धस्थल में ही स्वयं को अनुभव करने वाले हैं, अति-इन्द्रिय सुख के झूले में अर्थात् प्राप्ति के अनुभव में कम समय रहने वाले। ऐसे भी बहुत देखे। 

पहले नम्बर के चात्रकों की स्थिति सदा यही रही जो पाना था, वह पा लिया। अब समय भी बाकी थोड़ा रहा है। दूसरे नम्बर वाले जो सर्विसएबल, नॉलेजफुल ज्यादा, पॉवरफुल कम थे उनकी स्थिति यह रहती है कि पा लिया है, मिल रहा है और निश्चय है कि पा ही लेंगे। खुशी के झूले में झूलते हैं लेकिन बीच-बीच में झूले को तेज झुलाने के लिए कोई आधार की आवश्यकता है। वह आधार क्या है? कोई अन्य द्वारा की हुई सर्विस प्रति हिम्मत, उल्लास दिलाने वाला हो अर्थात् ‘बहुत अच्छा’ और ‘बहुत अच्छा’ करने वाला हो। नहीं तो खुशी का झूला झूलते-झूलते रूक जाता है। तो रूके हुए को चलाना चाहिए। पहली स्टेज वालों का ऑटोमेटिक झूला है। 

तीसरी स्टेज वालों की स्थिति-कभी प्राप्ति व विजय के आधार पर अति हर्षित और कभी बार-बार युद्ध की परिस्थिति में थकावट अनुभव करने वाले। किसी-न-किसी साधन के सहारे पर स्वयं को थोड़े समय के लिए खुश अनुभव करने वाले - कभी खुश, कभी शिकायत। क्या करूँ, कैसे करूँ, कर तो रहा हूँ इतनी मेहनत कर रहा हूँ, मेरी तकदीर ही ऐसी है, ड्रामा में मेरा ऐसा ही पार्ट नूँधा हुआ है और कल्प पहले इतना ही हुआ था ऐसे कभी ऊंचा, कभी नीचा इसी सीढ़ी पर चढ़ते-उतरते रहते हैं। ऐसे तीन प्रकार के बच्चे देखे। समय के प्रमाण वर्तमान स्थिति हर समय सर्व-प्राप्ति के अनुभव की होनी चाहिए। अब यह लास्ट समय युद्ध में नहीं लेकिन सदा विजयीपन के नशे में रहना चाहिए। क्योंकि बाप ने सर्व-शक्तियों का मास्टर बना दिया है, स्वयं से भी श्रेष्ठ प्राप्ति का अधिकारी बना दिया है। ऐसे मास्टर व सर्व अधिकारी दूसरी व तीसरी स्टेज के अनुभव में नहीं लेकिन फर्स्ट स्टेज के अनुभव में रहने चाहिये। विदेशी ग्रुप जो लास्ट इज फास्ट कहलाते हैं। फास्ट इज फर्स्ट कहा जाता है। तो जो भी विदेशी ग्रुप आया है वह सब फर्स्ट स्टेज वाले हो ना? फर्स्ट स्टेज अर्थात् सदा अनुभवी मूर्त्त। हर सेकेण्ड अनुभव में मग्न रहने वाले, ऐसा है ना? कभी और अभी कहने वाला नहीं। कभी यह होता और कभी वह होता - यह नहीं। सदा एक के रस में रहने वाले और एक के द्वारा सर्व अनुभव पाने वाले - उसको कहा जाता फर्स्ट है। बापदादा को भी ऐसे लास्ट सो फास्ट वाले बच्चों पर नाज़ है। हर- एक के मस्तक की तकदीर की लकीर बापदादा तो देखते हैं ना - कि हर एक बच्चे का भविष्य क्या है? भविष्य को देख हर्षित होते है। अभी के आये हुए ग्रुप में भी अच्छे उम्मीदवार बच्चे हैं। जो विश्व के दीपक बन बाप-समान अनेकों को रास्ता बताने के निमित बनेंगे। अभी तो विशेष विदेशियों के अर्थ हैं ना? कुछ यहाँ बैठे हैं सम्मुख और कुछ विदेश में दिन-रात इसी ही याद में रहते। वह क्या अनुभव कर रहे हैं - जैसे रेडियो व टी.वी. में कोई विशेष प्रोग्राम आना होता है तो सब अपना-अपना स्विच ऑन करके रखते हैं। सबका अटेन्शन उस एक तरफ ही होता है। ऐसे ही विदेश में चारों ओर बच्चे अपनी स्मृति का स्विच ऑन करके बैठे हैं। सबका संकल्प यही एक मधुबन की स्मृति का है। दूर होते हुए भी कई बच्चे बाप को इस संगठन में सम्मुख दिखाई देते हैं। अच्छा।

ऐसे साकार रूप में सम्मुख बैठने वाले व आकारी रूप में बुद्धियोग द्वारा सम्मुख बैठे हुए ऐसे सदा विजयी स्वरूप, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले, प्राप्ति-स्वरूप, सर्व वरदानों के अधिकारी, विश्व द्वारा सदा सत्कारी और विश्व प्रति सदा कल्याणी, ऐसे विश्व के दीपकों को, बापदादा के दिलतख्तनशीन बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। 

इस मुरली का सार

1. पहले नम्बर के चात्रकों की स्थिति सदा यही रहती है कि जो पाना था, वह पा लिया। वे सदा झूले में झूलते रहते हैं। 

2. समय के प्रमाण, वर्तमान स्थिति हर समय सर्व प्राप्ति के अनुभव की होनी चाहिए। क्योंकि बाप ने तुम्हें सर्व शक्तियों का मास्टर बना दिया है।